Print this page

पालिका की पिकनिक पॉलिटिक्स...✍️प्राकृत शरण सिंह

देखते ही देखते पांच साल बीत गए। परिषद की आखिरी बैठक भी आम रही। सोए हुए मुद्दों को जगाने वाला कोई नहीं था। सभी खट्‌टे-मीठे अनुभव बांटकर संतुष्ट हो गए। सहयोग के लिए एक-दूसरे का आभार भी जताया। इन सबके बीच असल मालिक एक बार फिर ठगा सा रह गया, हमेशा की तरह। उसे हिसाब देने की जरूरत ही महसूस नहीं की गई।

‘सरकार’ ने अपनी उपलब्धियां नहीं गिनाई और ना ही ‘असरकार’ ने सवाल दागे। यहां पक्ष-विपक्ष का तालमेल बेहतर दिखा। उस पर नए साल की पिकनिक ने तड़के का काम किया। इक्का-दुक्का पार्षदों को छोड़ दें तो सभी इसका हिस्सा बने। अब इस पिकनिक पॉलिटिक्स की चर्चा नगर में जोरों पर है।

रंगों से भरे ऐतिहासिक फतेह मैदान को निहारते हुए सीढ़ियों पर बैठे दो शख्स चर्चारत हैं। उनके बीच हुई मजेदार बातचीत के कुछ अंश सवाल-जवाब के रूप में पढ़िए…

 

सवाल: खुशी किस बात की थी, जो पिकनिक पर गए?

जवाब: बिना कुछ किए पांच साल गुजर गए, इससे बड़ी खुशी भला और क्या होगी! सांठगांठ की बानगी दिखी जलआर्वधन योजना में हुए भ्रष्टाचार पर। हम तो इंतजार करते रह गए, लेकिन परिणाम नहीं आया। आता भी कैसे, जिसने आवाज उठाई थी, उसका ही वीडियो बाजार में आ गया। फिर सत्ता पक्ष पर उठाई उंगली मुंह में रखकर बैठनी पड़ी।

 

सवाल: जब ऐसा था, तो आंदोलन का टिप्स लेने की बजाय पंडित जी की क्लास से बंक क्याें मारा?

जवाब: खेमा अलग है ना! फिर पांच साल के लेनदेन का रिश्ता सिर्फ एक आंदोलन के लिए कैसे तोड़ देते। सुना नहीं, परिषद में पंडित जी के प्रतिनिधि की अकेली आवाज गूंजी। कोरस के लिए चुने गए लोग सुर नहीं मिला पाए। चाहते तो जल आवर्धन के मुद्दे पर ही नगर सरकार को घेर देते। और फिर क्लास बंक करने वाले पार्षदों में से तो कुछेक मंडल पदाधिकारी भी हैं, जिन्हें अध्यक्ष ने परमिशन दी थी। चाहो तो पूछ लो!

 

सवाल: चुनाव में क्या मुंह लेकर जाएंगे, जनता के पास?

जवाब: उसकी चिंता नहीं। आधे से ज्यादा को तो जरूरत ही नहीं पड़ेगी। रिपोर्ट कार्ड बन चुके हैं। मुखौटे वाले पहले धरे जाएंगे, उन्हें भी पता है। फिर हिसाब देने को बचा ही क्या है… जनहित के मुद्दों पर इनकी खामोशी का शोर जनता सुन चुकी है। बहाने भी बनाएंगे तो जुबान साथ नहीं देगी।

 

सवाल: टिकरापारा पुल के लिए हस्ताक्षर कर क्या जताना चाहते हैं?

जवाब: यही कि कुर्सी पर बैठने के दिन लद गए, अब जनमुद्दों के साथ चलना पड़ेगा। जमीन पर उतरना पड़ेगा। होना तो ये चाहिए था कि परिषद में विपक्ष हल्ला बोलता और जनता से समर्थन मांगता, लेकिन हो उल्टा रहा है। पांच साल बेसुध रहे, अब होश में आने का दिखावा कर रहे हैं।

 

सवाल: भाजपा का विधानसभा स्तरीय आंदोलन खैरागढ़ में होना था, फिर छुईखदान को क्यों चुना गया?

जवाब: बात साल्हेवारा के पहाड़ियों की है। सरकार थी, तो वहां के कार्यकर्ताओं के लिए खैरागढ़ नजदीक था। सरकार के जाते ही पहाड़ियां खिसक गईं, इसलिए दूरी भी बढ़ गई। गंडई-छुईखदान वाले उनके नजदीक आ गए। खैरागढ़ियां खुश हैं कि चलो फिजूल खर्ची से बच गए!

Rate this item
(1 Vote)
Last modified on Tuesday, 12 January 2021 20:16
प्राकृत शरण सिंह

Latest from प्राकृत शरण सिंह