आर्थिक परिस्थितियों से जूझ रहे छात्र और खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय प्रशासन ने अब तक नहीं ली सुध, इसलिए की सांसद संतोष पांडेय से शिकायत।
खैरागढ़. कोरोना काल की परिस्थितियों को जानते हुए भी संगीत विश्वविद्यालय प्रशासन ने फीस में वृद्धि कर दी। इससे उन छात्र-छात्राओं के परिवार पर बोझ बढ़ गया, जिनकी आर्थिक हालत ठीक नहीं है।
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सारंगगढ़ के अमलीपाली गांव की रहने वाली एमएफए की छात्रा करुणा सिदार के माता-पिता मजदूर हैं। गांव में डेढ़ एकड़ की खेती है। इसी से गुजारा चलता है। दो छोटे भाई-बहन और हैं, लेकिन करुणा की पढ़ाई के लिए उनका स्कूल छुड़वा दिया गया। अब भाई ड्राइवरी कर परिवार को आर्थिक सहयोग करता है।
करुणा ने बताया कि कोरोना की वजह से जब लॉकडाउन हुआ तो वह खैरागढ़ में ही थी। इस दौरान उसने यूट्यूब पर मेहंदी सीखी। इसके बाद महिलाओं से संपर्क कर ऑर्डर लिए। इस बीच करवा चौथ और तीज में घर-घर जाकर मेहंदी लगाई। एक-दो की सगाई में भी पैसे कमाए। इसी कमाई से एमएफए की फीस भर पाई।
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अब परीक्षा फीस सर पर है। पांच जनवरी तक भरना है। उसी का टेंशन है। करुणा ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उसने कुछ ट्यूशन भी लिए। स्कूल बंद होने की वजह से घर पर जाकर बच्चों को पढ़ाया भी। अब उन्हीं बच्चों के पैरेंट्स का सहारा है। परीक्षा फीस के लिए उन्हीं से मदद मांगेंगी।
आर्थिक तंगी के चलते मिली थी हॉस्टल में जगह
कोरबा पोणी उपरोड़ा गांव के रहने वाले संतोष पटेल के पिता भी मजदूर हैं। दो एकड़ खेत है। बड़ी बहन की शादी हो चुकी है। एक छोटा भाई और है। जब पहली बार फर्स्ट ईयर में एडमिशन के लिए आया था तो तत्कालीन कुलपति ने से आर्थिक तंगी बताकर हॉस्टल में जगह और फीस में छूट की मांग की थी।
फीस में कटौती तो नहीं हुई, लेकिन हॉस्टल में जगह मिल गई। अभी फील्ड में काम कर सितंबर-अक्टूबर में तकरीबन 11000 रुपए देकर एडमिशन लिया था। अब परीक्षा फीस के लिए 3370 रुपए चाहिए। घर से मांग नहीं सकता। फीस कम हो जाएगी तो मदद मिलेगी।
जुगाड़ कर ले पाया एडमिशन, नहीं भर पाया हूं परीक्षा फीस
छात्रों ने बताया कि झारखंड रांची के निवासी बलेंदू मिश्रा पहले छात्र हैं, जिसने एडमिशन फीस में बढ़ोतरी को लेकर आवाज उठाई और विश्वविद्यालय प्रशासन की नजरों में आ गए। बलेंदु का कहना है कि कोरोना काल में पिता जी को दो माह की सैलरी नहीं मिली। बीमारी की वजह से हॉस्पिटल में काफी खर्च हो गया। इसके बावजूद जुगाड़ कर एडमिशन के लिए 3900 रुपए लाया।
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अब एक माह बाद फिर परीक्षा फीस देने की नौबत आ गई। अभी तक सोच नहीं पाया हूं कि क्या करुं? छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन को इतना तो सोचना ही चाहिए था कि कोरोना काल में गरीब परिवार के बच्चे आर्थिक बोझ सहने में सक्षम हैं या नहीं।
नहीं हुई सुनवाई, तब पहुंचे सांसद के पास
छात्र-छात्राओं का कहना है कि 21 दिसंबर को उन्होंने कुलसचिव के नाम आवेदन कर अपनी समस्या रखी थी, लेकिन उन्हें सकारात्मक जवाब नहीं मिला। उल्टे कैंपस-2 में उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। इसके दस दिन बाद 31 दिसंबर को जब सांसद संतोष पांडेय खैरागढ़ पहुंचे तो उन्होंने उनके सामने अपनी पीड़ा रखी। छात्रों का कहना है कि उन्हें सांसद के आश्वासन पर भरोसा है।
कार्यकारिणी की मीटिंग में रखी गई है बात
इस बारे में परीक्षा प्रभारी प्रो. काशीनाथ तिवारी का कहना है कि कार्यकारिणी की मीटिंग में फीस से संबंधित मामला रखा गया था। इस पर क्या फैसला लिया गया, इसके बारे में वे फिलहाल नहीं बता सकते। मिनिट्स आने के बाद भी वे कुछ कह पाएंगे।
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