Print this page

संस्मरण: जब शिवेंद्र बहादुर के एक फोन पर राजनांदगांव में रुकने लगी गीतांजलि एक्सप्रेस... Featured

छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर तब लोकसभा में बुलंद की थी मांग, इससे पहले आर्थिक नाकेबंदी का सुझाव भी दिया।

राजनांदगांव लोकसभा से तीन बार के सांसद और लगातार दो बार लोकसभा चुनाव जीतने का रिकार्ड बनाने वाले दबंग नेता स्व. शिवेंद्र बहादुर सिंह की आज जयंती है। इस अवसर पर उन्हें याद करते हुए कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता कमलजीत सिंह पिंटू ने रागनीति से उनके राजनीतिक जीवन से जुड़े संस्मरण साझा किए।

‘मुझे अच्छे से याद है… तब राजनांदगांव में गीतांजलि एक्सप्रेस का स्टॉपेज नहीं था। यात्रियों ने शिवेंद्र बहादुर जी से मुलाकात की। उन्हें अपनी परेशानी बताई। बोले- मुंबई-हावड़ा आने-जाने में दिक्कत होती है। यह सुनने के बाद उन्होंने तत्कालीन रेल राज्यमंत्री सुरेश कालमाड़ी से फाेन पर बात की और कहा कि गीतांजलि एक्सप्रेस राजनांदगांव में रुकनी चाहिए। इसके बाद कोलकाता के रेलवे हेड क्वार्टर में भी बात की। इसके तीन-चार दिन बाद राजनांदगांव में गीतांजलि के स्टॉपेज का आदेश जारी हो गया।’

यह भी पढ़ें: ‘पंडित जी' की पाठशाला...✍️प्राकृत शरण सिंह

‘वे छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाने के पक्षधर थे। इसी मुद्दे को लेकर एक बार भिलाई मंे बैठक हुई थी। उस बैठक में केउर भूषण, पवन दीवान, अरविंद नेता, मनकूराम सोनी और चंदूलाल चंद्राकर आदि भी मौजूद थे। वहां शिवेंद्र बहादुर जी ने कहा था कि छत्तीसगढ़ के खनिज भंडारों का लाभ दूसरे राज्यों को मिल रहा है। छत्तीसगढ़ में नाकेबंदी की जाए। उन्होंने लोकसभा में भी छत्तीसगढ़ को पृथक राज्य बनाने के लिए आवाज बुलंद की थी।’

‘पहले कमला कॉलेज रेलवे स्टेशन के पास था। इसके लिए बसंतुपुर में भवन निर्माण की रूपरेखा बनी। भूमिपूजन से पहले तत्कालीन विधायक बलबीर खनूजा ने आपत्ति दर्ज कराई थी, कहा था कि यह शहर से काफी दूर है। लड़कियों को आने जाने में असुविधा होगी। तब उन्होंने खनूजा जी की शंका का समाधान किया और छात्राओं के लिए बस की सुविधा मुहैया कराई। वे बोले- राजनांदगांव का बढ़ना जरूरी है। आज देखिए, शहर का विस्तार हुआ और बसंतपुर विकसित हो गया।’

‘भाेरमदेव के एक कार्यक्रम में स्व. राजीव गांधी मौजूद थे। उन्होंने मंच से ही कहा कि मेरी राजनीति राजीव गांधी से शुरू होकर उन्हीं पर खत्म हो जाती है। वे राजनांदगांव को एग्रीकल्चर हब बनाना चाहते थे। मोंगरा, सुतियापाठ आदि जलाशय उन्हीं की देन है। बीएनसी (बंगाल नागपुर कॉटन) मिल तब घाटे में चल रही थी, लेकिन वे बंद करने के पक्ष में कभी नहीं थे। डोंगरगढ़ में नवोदय खुलवाया और केंद्रीय विद्यालय भी। दबंगता से बात करते और वैसे ही काम भी करवाते। यही उनकी पहचान रही।’

यहां जानिए कौन थे शिवेंद्र बहादुर

खैरागढ़ राजपरिवार के युवराज थे, शिवेंद्र बहादुर। उनका जन्म 7 जनवरी 1943 को नागपुर में हुआ था। उनके पिता राजा वीरेंद्र बहादुर राजनांदगांव के पहले सांसद हुए। फिर माता पद्मादेवी सिंह सांसद बनीं। इसके बाद उनके बाल सखा राजीव गांधी के कहने पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें टिकट दी और 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में वे राजनांदगांव सीट से सांसद चुने गए।

इससे पहले 1977 में उन्हें खैरागढ़ विधासभा क्षेत्र से पहली बार टिकट मिली थी, लेकिन उनकी हार हुई। राजनांदगांव की राजनीति में एक वक्त ऐसा भी था, जब उनका एक क्षत्र राज रहा। शिवेंद्र के जानने वाले कहते हैं कि अविभाजित मध्यप्रदेश में सरकार राजनांदगांव के सारे फैसले उन्हीं पर छोड़ देती थी। प्रशासनिक कामकाज से लेकर विधासभा-लोकसभा की टिकट तक।

यह भी पढ़ें: ‘पंडित जी' की पाठशाला...✍️प्राकृत शरण सिंह

शिवेंद्र को 1989 में एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा। हालांकि इसके दो साल बाद हुए चुनाव में वे जीते, पर इसके बाद के चुनाव में कांग्रेस ने उनकी जगह मोतीलाल वोरा को टिकट दे दिया। तब शिवेंद्र ने जनता दल से चुनाव लड़ा, मगर हार गए। इसके बाद वे राजनीति में हाशिए पर चले गए और 31 दिसंबर 1999 को उनका निधन हो गया।

Rate this item
(1 Vote)
रागनीति डेस्क-2

Latest from रागनीति डेस्क-2