राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने 2018 की रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ में बाघों की जो संख्या बताई है उस पर वन विभाग के अफसरों को भरोसा नहीं हो रहा है। तब यह संख्या 19 बताई गई थी जबकि इसके चार साल पहले इनकी संख्या यहां 46 थी। मतलब चार साल मेें यहां 27 बाघ या तो मारे गए या फिर रिपोर्ट गलत थी। खैर सरकारी काम है, कुछ भी हुआ होगा। लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि यदि यहां बाघों की संख्या 19 ही मान लें तो प्रत्येक बाघ पर प्रतिदिन करीब 14 हजार रुपए यानी सालभर में करीब 51 लाख रुपए विभाग खर्च कर डाल रहा है। एक जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार ने बाघों के संरक्षण के लिए साल 2019-20 में 1193.29 रुपए प्रदेश सरकार को जारी किए थे। इनमें से 954.632 लाख रुपए वन विभाग को जारी कर दिए गए। इसके बाद भी प्रदेश में न तो बाघ खोजे गए और न ही उनके संरक्षण के लिए कुछ किया गया। यह बात अलग है कि करीब साल भर में ही तीन बार बाघों के खाल बरामद किए जा चुके हैं। अब सवाल यह उठता है कि विभाग को बाघों के बारे में कोई जानकारी नहीं है तो उनके संरक्षण के नाम पर उठाए गए पैसे कहां जा रहे हैं? उन लाखों रुपए से रोज कौन लाल हो रहा है? खैर आपको यह भी बता ही देते हैं कि बाघों की गिनती 15 अक्टूबर से शुरू करने का निर्देश एनटीसीए ने सभी राज्यों को दिए थे, और 15 मई तक इसकी रिपोर्ट मांगी गई है, पर छत्तीसगढ़ में इस पर काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है।
✍ जितेंद्र शर्मा