प्रतिनिधि और कांग्रेस नेताओं ने की जांच की मांग, अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध
खैरागढ़. जनपद पंचायत की सामान्य सभा में भ्रष्टाचार का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट (DSC) बनाने के नाम पर जनपद के अधिकारियों द्वारा 114 सरपंचों से 3000-3000 रुपए की अवैध वसूली की गई है। इस गंभीर प्रकरण को जनपद सदस्य सरस्वती सन्नी यदु ने सभा में उठाया, लेकिन जनपद सभापति शैलेन्द्र मिश्रा ने मामले को गंभीरता से लेने की बजाय अधिकारियों की ओर से जवाब देकर मामले को दबाने की कोशिश की।
सरपंचों से वसूली गई कुल 3.42 लाख की राशि, निर्धारित दर से 1.42 लाख अधिक
जानकारी के अनुसार, जनपद कार्यालय में एक पसंदीदा एजेंसी को बुलाकर सरपंचों को वहीं डीएससी बनवाने के लिए कहा गया। जबकि नियमानुसार, सरपंच इस कार्य को किसी भी अधिकृत एजेंसी से स्वतंत्र रूप से करवा सकते हैं। वर्तमान में डीएससी का अधिकतम निर्धारित शुल्क 1749 से 2000 रुपए तक होता है, लेकिन जनपद कार्यालय में 3000 रुपए प्रति सरपंच की दर से वसूली की गई। इस तरह कुल 3.42 लाख रुपए वसूले गए, जबकि वास्तविक खर्च लगभग 2 लाख रुपए होता। इस तरह 1.42 लाख रुपए की अवैध वसूली अधिकारियों और एजेंसी की मिलीभगत से की गई।
रसीद तक नहीं दी गई, पारदर्शिता का घोर अभाव
मामले को और गंभीर बनाता है यह तथ्य कि सरपंचों से ली गई इस राशि की कोई रसीद तक नहीं दी गई। न कोई अधिकृत चालान, न भुगतान की पुष्टि। यह न केवल वित्तीय अनियमितता है बल्कि ट्रांसपेरेंसी एक्ट और वित्तीय नियमों का खुला उल्लंघन भी है।
तकनीकी विशेषज्ञों ने बताया dsc चार्ज
जब यह मुद्दा सभा में उठा तो अधिकारी चुप रहे, लेकिन जनपद सभापति शैलेन्द्र मिश्रा ने खुद कहा कि “डीएससी का चार्ज 2500 रुपए है।” जबकि अनुभवी डीएससी सेवा प्रदाता सुरेन्द्र जैन और एमएस कम्प्यूटर के संचालक मनीष वर्मा ने स्पष्ट किया कि किसी भी क्लास की डीएससी 2000 रुपए से अधिक में नहीं बनती। सवाल यह भी उठता है कि जब यह तकनीकी और वित्तीय मामला है तो अधिकारियों के बजाय सभापति को जवाब देने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
सरपंचों की गवाही से हुआ भंडाफोड़
ईटार पंचायत के सरपंच ओमप्रकाश झा, चिचका के गौतम साहू और मुहडबरी के राकेश वर्मा जैसे कई सरपंचों ने स्वीकार किया कि डीएससी जनपद कार्यालय में ही बनवाया गया और 3000 रुपए चार्ज लिए गए। उन्होंने यह भी बताया कि डीएससी बनाने वाले कौन थे, यह तक उन्हें नहीं बताया गया, न ही किसी अधिकृत एजेंसी की जानकारी दी गई।
व्हाट्सएप मैसेज से मिली पुष्टि
18 मार्च और 23 अप्रैल को सरपंचों के व्हाट्सएप ग्रुप में जनपद कर्मियों द्वारा मैसेज किया गया कि डीएससी बनवाने के लिए सभी सरपंच आधार, पैन और मोबाइल नंबर लेकर जनपद कार्यालय पहुंचे। इसके अलावा 23 अप्रैल के संदेश में कुछ पंचायतों के नाम लेकर कहा गया कि डीएससी जनपद करारोपण अधिकारी से प्राप्त करें। यह संदेश इस बात की पुष्टि करते हैं कि पूरा तंत्र सुनियोजित तरीके से संचालित हुआ।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और कार्रवाई की मांग
कांग्रेस नेता और जनपद सदस्य आकाशदीप गोल्डी ने कहा कि आगामी सामान्य सभा में जांच समिति गठित करने का प्रस्ताव लाया जाएगा। वहीं, विधायक प्रतिनिधि और वरिष्ठ कांग्रेस नेता मनराखन देवांगन ने कहा, “यह सीधे-सीधे भ्रष्टाचार है। डीएससी जैसे सामान्य तकनीकी कार्य के नाम पर सरपंचों से वसूली और रसीद न देना, यह दर्शाता है कि भाजपा की सरकार में प्रशासन किस हद तक भ्रष्ट हो चुका है। दोषियों के खिलाफ शिकायत कर कड़ी कार्रवाई की मांग करेंगे।”
प्रशासन की चुप्पी से गहराया संदेह
पूरे मामले में अभी तक जिला प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। अधिकारी चुप हैं और जनपद स्तर पर जिम्मेदारी तय करने की कोई पहल नहीं की जा रही है। इससे साफ जाहिर होता है कि कहीं न कहीं उच्चस्तरीय संरक्षण प्राप्त है और भ्रष्टाचार को दबाने की कोशिश की जा रही है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह मामला भी अन्य फाइलों की तरह धूल फांकता रहेगा या फिर वास्तव में दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। सरपंचों की गरिमा, पंचायत की साख और सार्वजनिक धन की रक्षा के लिए इस मामले की निष्पक्ष जांच बेहद जरूरी है।
इस संबंध में जानकारी लेकर ही कुछ बता पाऊंगा।
गीत कुमार सिन्हा, उप संचालक जिला पंचायत केसीजी