00 स्थानीय मीडिया की अनदेखी, बाहरी एजेंसी को 20 हजार का भुगतान
00 83 हजार रुपये चाय-नाश्ते में उड़ाए गए, अध्यक्ष बोले—कार्यक्रम ही नहीं हुआ
राज्य शासन की संयुक्त वन प्रबंधन योजना के अंतर्गत वन क्षेत्रों में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से चलने वाले "वन मितान जागृति कार्यक्रम" की आड़ में गातापार जंगल में वित्तीय अनियमितता का मामला सामने आया है। आरटीआई से प्राप्त दस्तावेजों से खुलासा हुआ है खैरागढ़ के गातापार जंगल में 19 और 20 दिसंबर 2024 को आयोजित बताए गए कार्यक्रम के नाम पर वन क्षेत्र के विकास के लिए मिले 83,810 रुपये महज नाश्ता, चाय-बिस्किट, बैठक व्यवस्था में खर्च कर दिए गए हैं। यह भुगतान संयुक्त वन प्रबंधन समिति गातापार जंगल द्वारा किया गया है।
छह बिल, चार प्रतिपूर्ति—समिति अध्यक्ष अनजान
मार्च 2025 में निकाली गई राशि छह बिलों के आधार पर भुगतान की गई। इनमें से चार बिल प्रतिपूर्ति के नाम पर लगाए गए, जिनमें सीधे तौर पर वनपाल और रेंजर के नाम चेक काटे गए। आरटीआई के अनुसार, वनपाल कैलाश सिंह को 4900 रुपये और रेंजर रमेश टंडन को क्रमशः 49,000 रुपये, 5250 रुपये और 5300 रुपये का भुगतान किया गया। दावा किया गया कि इन अधिकारियों ने पहले से अपने निजी खर्च से व्यवस्था की थी, जिसे बाद में प्रतिपूर्ति के रूप में भुगतान किया गया।
फ्लैक्स और कवरेज के नाम पर भी सवाल
कार्यक्रम के फ्लैक्स तैयार करने के लिए 1360 रुपये का भुगतान फ्लैक्स खैरागढ़ को किया गया, लेकिन कार्यक्रम के कवरेज के लिए पास के खैरागढ़ के पत्रकारों को दरकिनार कर 60 किलोमीटर दूर स्थित राजनांदगांव की एक न्यूज़ एजेंसी को बुलाया गया। यह चयन प्रक्रिया अपने आप में पारदर्शिता की कमी और पक्षपात की ओर इशारा करती है।
विकास कार्यों की राशि से “जलपान व्यवस्था”
गातापार में आयोजित कार्यक्रम के नाम पर महज दो दिनों के भीतर कुल 83,810 रुपये खर्च होना और उसमें चाय-नाश्ता-बिस्किट तथा बैठक व्यवस्था जैसी सुविधाओं को शामिल करना यह बताने के लिए काफी है कि विकास की राशि किस तरह से लक्ष्यों से भटककर केवल खानपान में सिमट गई है।
समिति अध्यक्ष ने उठाए गंभीर सवाल
गातापार संयुक्त वन प्रबंधन समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र नेताम से जब इस संदर्भ में पूछा गया तो उन्होंने चौंकाने वाला बयान देते हुए कहा कि मेरे द्वारा कार्यक्रम की कोई स्वीकृति नहीं दी गई है, ना ही मुझे इसके आयोजन की जानकारी थी। मैंने सिर्फ ऑडिट के नाम पर 1500 रुपये का चेक हस्ताक्षर किया है, बाकी किसी भी चेक पर हस्ताक्षर नहीं किया गया है। अगर कोई चेक जारी हुआ है, तो वह मेरी जानकारी के बिना हुआ है।
इस बयान ने पूरे मामले को और गंभीर बना दिया है क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि समिति के नाम पर जो भी खर्च किया गया, वह समिति की स्वीकृति के बिना ही किया गया है।
वन विभाग का पक्ष—कार्यक्रम हुआ था
वहीं दूसरी ओर वनपाल मंजू पटेल ने यह स्वीकार किया कि कार्यक्रम आयोजित किया गया था, और उस दिन समिति अध्यक्ष क्षेत्र से बाहर थे। उनके अनुसार कार्यक्रम प्रभारी वनपाल कैलाश और रेंजर टंडन थे, जिन्होंने निजी खर्च से व्यवस्था की और बाद में प्रतिपूर्ति करवाई गई।
चेक पर हस्ताक्षर नहीं, फिर भुगतान कैसे?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब समिति अध्यक्ष ने चेक पर हस्ताक्षर नहीं किए, तो चेक कैसे जारी हुए? क्या चेक के फर्जी हस्ताक्षर किए गए या बैंक स्तर पर मिलीभगत हुई? समिति की स्वीकृति के बिना किसी भी भुगतान को वैध नहीं माना जा सकता।
अनियमितता की जांच की मांग
इस मामले ने स्थानीय प्रशासन और वन विभाग की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। क्षेत्रीय ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों ने मांग की है कि मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए और दोषियों पर कार्रवाई हो।