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देश के सांसदों के नाम खुला पत्र... Featured

फाइल फोटो फाइल फोटो

प्रिय सांसद महोदय,

लोकसभा एवं राज्यसभा

भारत सरकार

 

विषय : कोराना (कोविड 19) महामारी के इस दौर में आपकी चुप्पी तोड़ने बाबत

 

महोदय,

 

जैसा कि सर्वविदित है कि वैश्विक कोराना महामारी से हमारा हिंदुस्तान भी अछूता नहीं है। ताजा जानकारी के अनुसार हमारा देश महामारी संक्रमण के क्रम में आठवें नंबर पर है। इसे कतई अच्छा नहीं माना जा सकता। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि केंद्र और राज्य सरकारों ने इससे निपटने के लिए कुछ नहीं किया। बहुत कुछ किया है तभी तो देश बचा हुआ है। ज्यादातर राज्यों में हालात काबू में हैं। लेकिन अब जो किया जा रहा है, उसे देश के भविष्य के लिए कतई अच्छा नहीं माना जा सकता। मेरा मानना है कि केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के तीसरे दौर में अन्य ढीलों के साथ शराब दुकानों को खोलने की छूट देकर बड़ी गलती की है। हो सकता है अर्थव्यवस्था डगमगाने के कारण राज्य सरकारों ने केंद्र पर इसके लिए दबाव बनाया हो, पर केंद्र में देश की जनता ने आपको चुनकर इसलिए ही तो भेजा है कि देश हित में बिना किसी दबाव के निर्णय लेने में आप सहायक हों। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

क्या आपको नहीं लगता कि 4 मई से दी गई ढील के बाद कोरोना का संक्रमण बढ़ने का अंदेशा ज्यादा बढ़ गया है। ढील के बाद पहले ही दिन देश में 3900 के करीब कोरोना पॉजिटिव के मामले सामने आए हैं जबकि मृतकों की संख्या 195 बताई गई है। यह आंकड़ा अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। क्या आपको नहीं लगता कि 40 दिनों बाद शराब दुकानों के खुलने से पियक्कड़ों का हुजूम जिस प्रकार से देशभर में उमड़ा, उससे केंद्र और राज्य सरकारों के साथ ही देश की जनता द्वारा अब तक किए गए सारे प्रयासों के बेकार साबित होने का अंदेशा है। क्या आपको नहीं लगता कि शराब से सरकारों को इन कुछ दिनों में जो राजस्व की प्राप्ति होगी, उससे ज्यादा राशि कोरोना का संक्रमण बढ़ने से केंद्र और राज्य सरकारों को खर्च करनी पड़ सकती है। क्या आप बता सकते हैं कि प्रवासी मजदूरों को बड़ी संख्या में अब उनके मूल प्रदेशों में लाने का निर्णय सही है, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों ने बहुतेरे ऐसे संस्थानों को पुन: शुरू करने का आदेश जारी कर दिया है, जहां ये मजदूर काम करने गए थे। अब जब उनके पास पैसे नहीं हैं, उन्हें काम के साथ पैसे मिलने की संभावना दिख रही हो, उन्हें उनके गृह प्रदेश में भेजना और वहां पहुंचने के बाद भी 14 दिन तक घर से दूर रखकर उनकी देखभाल करने का निर्णय क्या उचित है। इससे किसे क्या फायदा होगा। क्या आप बता सकते हैं कि ये मजदूर जो काम के लिए दूसरे प्रदेशों में गए थे उन्हें उनके गृह प्रदेशों में रोजगार दिलाने की कोई योजना आपके पास है। और नहीं है तो आपने इस निर्णय का देशहित में विरोध करने का साहस क्यों नहीं दिखाया। विदेशों में फंसे तकरीबन 15 हजार लोगों को भारत लाने की तैयारी है। क्या आपको लगता है कि देश इसके लिए तैयार है। यह तब हो रहा है जब यह महामारी बिना लक्षण दिखाए ही जानें ले रही है। यह सारा देश जानता है कि विदेश से आने वालों के परीक्षण में बरती गई गंभीर लापरवाही का नतीजा ही है कि भारत में संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है। सरकार का अहम हिस्सा होने के नाते क्या आप इस बात की गारंटी लेते हैं कि विदेशों से लाये जा रहे लोग संक्रमित नहीं हैं?

प्रिय महोदय, क्या आप सांसद देश की जनता के हित में ऐसे मामलों में बिना पक्ष और विपक्ष की राजनीति में पड़े अपनी आवाज बुलंद नहीं कर सकते। देश की जनता को आपसे बड़ी आशा है। आपने देख ही लिया होगा कि जनता ने अपनी सरकारों के एक इशारे पर अपनी विलासिता छोड़ दी। काम-धंधे छोड़ दिए। खुद को घरों में बंद कर लिया। जनता ने आपकी बात इसीलिए तो मानी न कि उन्हें आप पर भरोसा है। मेरा आपसे अनुरोध है कि उस भरोसे को न तोड़ें।

मैं आपको यह खुला पत्र देश का एक नागरिक होने की हैसियत से लिखने का साहस कर रहा हूं। मुझे उम्मीद है कि आप मेरे विचार से सहमत होंगे और पत्र को अन्यथा नहीं लेंगे।

 

भवदीय

जितेंद्र शर्मा

संपादक- मासिक पत्रिका रागनीति

मोबाइल - 9926900951, 9755406789

मेल - This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

पता - ए-11 आदर्श नगर, कुशालपुर, रायपुर (छत्तीसगढ़)

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Last modified on Wednesday, 06 May 2020 15:23

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