मजदूर हाथों ने थामी कलम, घर को बनाया स्कूल और कोराेना काल में बच्चों को सिखाया कखग
ख़ैरागढ़. कोरोना काल में सकारात्मक ऊर्जा के कई उदाहरण सामने आए, जिसमें लोगों ने अपनी दिनचर्या में बदलाव कर संरचनात्मक कार्य किए। ऐसा ही कुछ करने की कोशिश की साल्हेवारा के जंगल में बसे लमरा गांव के युवाओं ने। मजदूरी करने वाले इन युवाओं ने कलम थाम ली।
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घर को स्कूल में तब्दील किया और गांव के बच्चों को कखग की ट्रेनिंग देने लगे। धीरे-धीरे हिंदी, गणित, विज्ञान के पाठ से उन्हें जोड़ने का प्रयास किया। सिर्फ इसलिए कि गांव के बच्चे शिक्षा से जुड़े रहें। कोरोना काल में जब स्कूल बंद हुए तो लमरा के राजू धुर्वे ने शिक्षा का अलख जगाए रखने रोज शाम 5 से 7 बजे तक कक्षाएं शुरू की। इसके बाद उनके साथ कुछ साथी भी जुड़े। रूप सिंह धुर्वे ने अपने घर के दरवाज़े बच्चों के लिए खोल दिए।
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उन्होंने अपने घर को ही स्कूल में तब्दील कर दिया। आज राजू सहित अन्य ने एक संस्था बनाकर बच्चों को नियमित शिक्षा देने की ठानी है। फिलहाल ये युवक दो स्थानों पर शिक्षा का अलख जगा रहे हैं। इस काम में राजू के साथ ग्राम के ही आधा दर्जन से अधिक युवक युवती निस्वार्थ भाव से अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं।
संसाधनों की है कमी, पर नहीं मानी हार
युवाओं के पास बच्चों को शिक्षित करने के लिए न एजुकेशनल चार्ट था और न ही अन्य कोई संसाधन। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। सीमित संसाधन में बच्चों को अच्छी ट्रेनिंग देने का प्रयास किया।
पूर्व जनपद उपाध्यक्ष ने किया ब्लैक बोर्ड का वादा
बुधवार को लमरा पहुंचे जनपद उपाध्यक्ष खम्मन ताम्रकार ने शिक्षकों व बच्चों से वायदा किया। कि वे जल्द ही संस्था के लिए ब्लैक बोर्ड लेकर पहुंचेंगे। ताम्रकार की ओर से संस्था को अल्फाबेटिकल चार्ट और पहाड़ा चार्ट प्रदान किया गया। ताम्रकार ने बच्चों और शिक्षकों को हर संभव सहयोग का विश्वास दिलाया।
उपहार में ड्राइंग बुक और स्कैच सेट
वनांचल में चल रहे है इस शिक्षा रथ की जानकारी पूर्व जनपद उपाध्यक्ष ताम्रकार ने स्वयंसेवी भागवत शरण सिंह के साथ साझा की। जानकारी मिलते ही स्वयंसेवी लक्ष्मीचंद आहूजा, विजय प्रताप सिंह व अन्य बच्चों के लिए ड्राइंग बुक सहित अन्य सामान उपहार स्वरूप लेकर गए।
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