जंगल की ज़मीन को संरक्षित करने में अधिकारी लापरवाह
साल्हेवारा/ खैरागढ़. आयरन ओर की अवैध तस्करी और खुदाई को लेकर नए खुलासे सामने आ रहे हैं,जो अवैध उत्खनन और तस्करी के बड़े खेल की ओर इशारा कर रही हैं। शुक्रवार को माइनिंग विभाग की टीम ने मौके पर पहुंचकर कार्यवाही की । हालांकि अवैध उत्खनन में लगी हुई गाड़ियां अभी वन विभाग के परिसर में खड़ी हुई हैं। वनवासियों के दबाव में माइनिंग की टीम ने कार्यवाही ज़रूर कर दी है। पर पूरी कार्यवाही में कहीं न कहीं प्रशासनिक संरक्षण की बू आ रही है। बताया जाता है कि जिस क्षेत्र से आयरनओर की खुदाई और तस्करी की जा रही है। वह पूरा का पूरा क्षेत्र लगभग 120 एकड़ का है। जिसमें से लगभग एक हेक्टेयर में खुदाई की जा चुकी है। और रोज़ाना सैकड़ों ट्रक से आयरन ओर से भरी गाड़ियां पार हो रही हैं । हालांकि इस पूरे 120 एकड़ के हिस्से को बंगलौर (कर्नाटक ) के रहवासी का बताया जा रहा है। जिसमें एक अन्य पार्टनर भी हैं,जिसकी जाति से आदिवासी होने की जानकारी मिली है। जो मूल रूप से अम्बागढ़ चौकी के रहने वाले हैं। जानकारीनुसार उक्त ज़मीन 2008 में कर्नाटक के उक्त रहवासियों ने खरीदी थी।
क्या प्रशासनिक संरक्षण में खरीदी गई ज़मीन ?
क्षेत्र में आयरन ओर के होने की जानकारी के बाद पहले ही उक्त क्षेत्र शासन के संरक्षण में आ जाती है। फिर किस आधार पर उक्त भूमि की साल 2008 में खरीदी बिक्री की गई।
मुरम की आड़ में आयनर ओर की तस्करी
आयरनओर से भरी ये गाड़ियां मुरुम की आड़ में बाहर निकाली जा रही हैं। रात के अंधेरे में तस्करी का खेल खेला जा रहा है। संरक्षित क्षेत्र से रोज़ाना सैकड़ों गाड़ियों का निकालना राजनीतिक व प्रशासनिक संरक्षण की ओर भी इशारा कर रही हैं।
सवालों के घेरे में प्रशासन
- जब क्षेत्र संरक्षित तो कैसे हुई खरीदी बिक्री ?
- आयरन ओर है तो प्रशासन क्यों नहीं कर रहा पर्याप्त प्रक्रिया
- कर्नाटक के व्यापारी की साल्हेवारा के भाजिडोंगरी में ज़मीन खरीदने में रुचि का कारण कहीं आयरन ओर की बहुतायत तो नहीं ?
- अब तक कितना आयरन ओर पार क्या प्रशासन को है जानकारी ?
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3 अलग रकबों में है ज़मीन - पटवारी
क्षेत्र के पटवारी विकल्प यदु ने बताया कि उक्त भूमि 3 अलग रकबों है,जिसमें से दो रकबे क्रमशः के.नगप्पा और के. धीरज के नाम पर दर्ज हैं। जो मूल रूप से कर्नाटक बंगलुरु के रहने वाले हैं। हालांकि उनके भजिडोंगरी में भी कुछ अवधि रहने की बात कही जा रही है। पर मूल रूप से दोनों बंगलुरु के रहने वाले बताए जाते हैं।
खुदाई की जानकारी नहीं,परिवहन की जानकारी - तहसीलदार
तहसीलदार प्रफुल्ल गुप्ता ने बताया कि माइनिंग विभाग अपनी नियामानुसार कार्यवाही कर रहा है। खुदाई की जानकारी नहीं मिली है। पहले से उपलब्ध मुरुम के परिवहन पर कार्यवाही की गई है।
माइनिंग विभाग देगा जानकारी - एसडीएम
मामले पर एसडीएम निष्ठा पांडेय तिवारी ने बताया कि कार्यवाही माइनिंग विभाग के लोग कर रहे हैं। इसलिए पूरी जानकारी वे ही दे पाएंगे।
2014 में भी मचा था हंगामा
कर्नाटक के मूल निवासी दोनों ज़मीन मालिकों ने उक्त ज़मीन 2008 में खरीदी थी। 2014 में भी उक्त ज़मीन पर खुदाई का कार्य किया गया था। और परिवहन भी किया जा रहा था जिसके बाद कार्यवाही हुई और राजनैतिक और प्रशासनिक स्तर पर कार्यवाही होने पर खुदाई और परिवहन रुक गया था। पर वनवासियों की मानें तो बीतें 3 - 4 सालों से सैकड़ों ट्रक आयरन ओर मुरुम की आड़ में पार किये जा चुके हैं।