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बांस की सरकार और लकड़ी के इरादे Featured

छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ में जब विकास हुआ तो लोगों ने आंखें मल लीं—क्योंकि जहां 41 लाख की योजना थी, वहां ज़मीन पर बस बांस-लकड़ी की फूंक थी। ईको-पर्यटन के नाम पर ऐसा ईको गूंजा कि जंगल के जानवर भी हंसते-हंसते पेड़ों से गिर पड़े।

प्रशासन ने सोच लिया होगा: "कम खर्च, ज्यादा बिल—यही तो असली स्किल!"

विधायक जी मौके पर पहुंचीं तो बांस की बनी कुर्सी उन्हें घूर रही थी, मानो कह रही हो, "बैठो मत, वरना सच गिर जाएगा!"

मिशन संडे की टीम आई, देखा कि 10 लाख में निपटने वाला काम 41 लाख का बताया गया। अब जंगल की लकड़ी मुफ्त, मज़दूरी नाम मात्र, तो बाक़ी 30 लाख क्या पक्षियों के घोंसले पर खर्च हुआ?

वनमंडलाधिकारी महोदय बोले, "प्रथम दृष्टया गड़बड़ी नहीं दिख रही!" अरे साहब, प्रथम दृष्टि तो प्रेम में धोखा देती है, भ्रष्टाचार में क्यों नहीं देगी?

अब सवाल है:

क्या फाइलों में दफन होगी ये रिपोर्ट?

क्या बांस की झोपड़ी बनेगी जांच समिति का ऑफिस?

और क्या अगली योजना में “मिट्टी के महल” बनाने का प्रस्ताव आएगा?

समाधान: ऐसे मामलों में योजना स्थल पर एक बोर्ड लगा देना चाहिए— "यहां 41 लाख खर्च किए गए हैं। कृपया अपनी आंखें और आत्मा खोलकर देखें।"

 जब तक भ्रष्टाचार पर बांस नहीं चढ़ेगा, विकास यूं ही लकड़ी की तरह सड़ा-सड़ा रहेगा।

अंत में एक सुझाव: यदि कोई फिल्म निर्माता इस घोटाले पर बायोपिक बनाना चाहें, तो टाइटल तैयार है—

बांसे में बसा विकास” या “घोटाला जंगल बुक

आप बताएँ, कौन-सी ज्यादा सटीक लगेगी?

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Last modified on Monday, 26 May 2025 14:57

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