ख़ैरागढ़. कोरोनाकाल में अपनी जान की परवाह किए बगैर लोगों के घरों में जाकर सेवा देने वाले एमडी डॉ. नीतिराज ने बेटी के जन्म पर नवरात्र में अपनी ओपीडी निशुल्क कर दी। डॉ. नीतिराज सिंह बंगलौर से एमडी मेडिसिन हैं। और बड़े शहरों को छोड़ ख़ैरागढ़ को अपनी सेवा के लिए चुना है। ख़ैरागढ़ में जन्मे डॉ.नीतिराज समाजसेवी लाल श्री राज सिंह के पुत्र हैं। और प्रगति क्लिनिक के नाम से अपनी स्वास्थ सेवा का संचालन करते हैं। कोरोना की दूसरी लहर की मेडिकल इमरजेंसी के दौरान जब पूरी स्वास्थ्य सेवा चरमरा चुकी थी। उस दौरान डॉ. नीतिराज ने कोविड पेसेंट्स के घर जाकर उनकी देखभाल की थी। इस दौरान वे नगर की स्वयं सेवी संस्थाओं के भी सहयोगी रहे। और उन्हें आर्थिक मदद पहुंचाई। कोविड की दूसरी लहर के दौरान भी डॉ. नीतिराज ने अपनी सेवा लगभग निशुल्क ही रखी। घरों में जाकर ऐसे मरीजों को भी मेडिकल ट्रीटमेंट दिया। जो होम आइसोलेशन और खराब कंडीशन में थे। इस दौरान उन्होंने शासन के कोरोना प्रोटोकॉल के नियमों का भी पालन किया।

पत्नी भी हैं डॉक्टर,बैंगलोर में ले रही स्वास्थ्य लाभ
कोरोना के कठिन समय के बाद डॉ. नीतिराज के घर पर बीते 20 सितंबर को बेटी का जन्म हुआ। जिसके बाद डॉ. नीतिराज ने तय किया कि आने वाले नवरात्र के नौ दिनों तक अपने क्लिनिक में आने वाले मरीजों से वे कोई राशि नहीं लेंगें। और अपनी ओपीडी निशुल्क कर दी। नवरात्र के पहले दिन से क्लिनिक में आर्थिक रूप से अक्षम लोगों को निशुल्क चिकित्सकीय परामर्श दे रहे हैं। ज़रूरत मंदों को बहुत आवश्यक दवाइयां भी निशुल्क दे रहे हैं। डॉ.नीतिराज की पत्नी डॉ. भवानी सिंह भी डॉक्टर हैं। और बच्ची के जन्म के बाद बैंगलोर में स्वास्थ्य लाभ ले रही हैं। उनका एक बेटा भी है। और बेटे के बाद बेटी के जन्म को वे अपना सौभाग्य मानते हैं।

गांवों में लगा चुके हैं निःशुल्क कैम्प
डॉ. नीतिराज अपने क्लिनिक की स्थापना के बाद से ही ग्रामीण क्षेत्र में लगातार निशुल्क सेवा दे रहे हैं। निःशुल्क कैम्प के माध्यम से लगातार ग्रामीणों की सेवा कर रहे हैं। निशुल्क चिकित्सकीय परामर्श के साथ अति निर्धन मरीजों को दवाइयां भी निःशुल्क उपलब्ध कराने की कोशिश करते हैं।

बेटी के जन्म से जगा भाव, इसलिए कर दी घोषणा - डॉ. नीतिराज
डॉ.नीतिराज ने बताया कि जन्म से पहले ही उनकी इच्छा थी कि उनके एक बेटी हो। ईश्वर ने इस इच्छा को सुना और बेटी का जन्म हुआ। बस,खुशी थी। तो माता के नवरात्रों में इस तरह से सेवा की इच्छा जगी और निःशुल्क ओपीडी रखने का विचार आया। किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति ओपीडी के समय में बेझिझक आ सकता है।